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]]>गांव हो या शहर, अंडे और चिकन की मांग हर जगह है गांव और शहर दोनों जगह मुर्गी फार्म या पॉल्ट्री फार्म का व्यापार काफी लोकप्रिय हो चुका है इस बिजनेस को छोटे से लेकर बड़े पैमाने पर भी किया जा सकता है इस व्यापार में मुनाफे को देखते हुए बैंक भी लोन देने के लिए आगे आ रहे हैं इसे आप 01 लाख रुपये और 01 वर्ग फुट जमीन से शुरु कर सकते हैं और अच्छे पैसे कमा सकते हैं
मुर्गी फार्म बिजनेस के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
डेयरी यानी दूध का कारोबार दूध की मांग कभी कम नहीं हो सकती, हां कभी कभी बाजार से दूध जरुर गायब हो जाता है डेयरी कारोबार भी 01 वर्ग फुट जमीन और 04 मवेशी के साथ शुरु किया जा सकता है थोड़ी सी समझ का इस्तेमाल कर आप डेयरी फार्म के बिजनेस को उंचाई पर ले जा सकते हैं
डेयरी फार्म बिजनेस के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
शाकाहारियों के लिए मशरूम चिकेन, मटन की कमी पूरा करने वाला माना जाता है वैसे इसका सेवन शाकाहारी, मांसाहारी सभी करते हो आजकल शादी ब्याह बिना मशरूम की सब्जी के पूरा नहीं होता होटलों में भी इसकी काफी मांग है मशरूम की खेती आमदनी का बेहतर जरिया है इसके लिए पर्याप्त जगह होना अनिवार्य है आप इसे 50 हजार रुपये में भी शुरु कर सकते हैं और मांग के अनुसार धीरे धीरे आगे बढ़ा सकते हैं
मशरूम की खेती के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
मछली पालन के कारोबार में लोगों की रुचि बढ़ती जा रही है इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि जहां एक हेक्टेयर खेत में गेहूं, धान और गन्ने की फसल से ज्यादा से ज्यादा सवा लाख रुपये तक कमाए जा सकते हैं तो वहीं इतने ही क्षेत्र में तालाब बना दिया जाए तो ढाई लाख रुपये तक कमाए जा सकते हैं इसमें निवेश और मेहनत की तुलना में आमदनी दोगुनी होती है अपने तालाब में मछली पालन कर हर छह महीने पर लाखों रुपये कमाए जा सकते हैं बाजार में लोकल तालाब की मछलियों की मांग ज्यादा होती है
मछली पालन के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
विदेशी बाजारों में सूखे फूलों की मांग काफी ज्यादा है यूरोप, अमेरिका और जापान जैसे देशों में भारत से ही सूखा फूल निर्यात होता है सूखे फूल के व्यापार में भारत दुनिया में पहले स्थान पर है सूखे फूल के तहत के सूखा तना, सूखा बीज और कलियां आते हैं भारत दुनिया भर के 20 देशों को सालाना 100 करोड़ रुपये का सूखा फल विदेश भेजता है
किसानों को खेती के लिए बीज, खाद और कृषि संबंधित उपकरणों की जरुरत होती है इसमें काफी लाभ होता है खाद के दुकान के लिए सरकार से लाइसेंस लेने की जरुरत होती है लाइसेंस लेने के बाद आप इस व्यापार को शुरु कर सकते हैं खाद के व्यापार के लिए पर्याप्त जगह वाले एक गोदाम और करीब दो लाख रुपये निवेश की जरुरत होती है
डबल रोटी बनाने के व्यापार को बेकरी उद्योग कहा जाता है डबल रोटी का उपयोग दिन प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है ग्रामीण क्षेत्रों में नाश्ते के लिए इसकी बड़ी मांग होती है क्यांकि ये खाने में सुपाच्य और स्वादिष्ट होता है. पर्याप्त जगह और डेढ़ लाख रुपये के निवेश के साथ बेकरी का व्यापार शुरु किया जा सकता है. इसमें निवेश की तुलना में करीब 25 फीसदी का शुद्ध लाभ होता है
बेकरी का बिजनेस के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
आलू का चिप्स सभी वर्गों में बेहद लोकप्रिय है पहले कई बड़ी कंपनियां चिप्स बनाने का कारोबार करती थी लेकिन अब लोकल लेवल पर भी कई कंपनियों ने ये व्यापार शुरु कर दिया है छोटे पैमाने पर भी आप इस कारोबार को शुरु कर सकते हैं शुरुआती दौर में पारंपरिक तरीके से आलू के चिप्स बनाकर इसे नमकीन बनाकर सादे पैकेट में भी बेचा जा सकता है बड़े पैमाने पर चिप्स का कारोबार करने के लिए कम से कम दस लाख रुपये का निवेश करना होगा इसके अलावा पर्याप्त जगह की शर्त अनिवार्य है
आलू चिप्स उद्योग के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
दाल मिल का व्यापार शहरी या ग्रामीण क्षेत्र कहीं भी किया जा सकता है ये कम लागत में बेहतर मुनाफे वाला कारोबार है दाल मिल के व्यापार के लिए ज्यादा जगह की जरुरत भी नहीं पड़ती 30 से 50 वर्गफीट तक जगह इसके लिए पर्याप्त होती है दाल मिल शुरु करने के लिए एक खास किस्म की मशीन आती है
जिससे आप चना, मसूर, मूंग, सोयाबीन, मूंग, उड़द आदि दाल निकाल सकते हैं और अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं. मशीन 01 लाख रुपये से 03 लाख रुपये तक आती है आप अपने बजट के हिसाब से मशीन की खरीद कर सकते हैं इस व्यापार के लिए कम से कम 05 लाख रुपये पूंजी की आवश्यक्ता पड़ेगी
दाल मिल का व्यापार के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
एलोवेरा के गुणों से लगभग हर कोई परिचित है छोटी छोटी कंपनियां से लेकर मल्टी नेशनल कपंनियां भी एलोवेरा के बिजनेस में कूद चुकी हैं निवेश के हिसाब से इसमें आमदनी प्राप्त की जा सकती है एलोवेरा का बिजनेस दो तरीके से किया जा सकता है एक तो आप इसकी खेती कर सकते हैं और दूसरा एलोवरा की प्रोसेसिंग यूनिट लगा कर इसका जूस निकाल कर मोटी कमाई की जा सकती है जूस के प्लांट के लिए 05 लाख रुपये से लेकर 07 लाख रुपये तक का इंवेंस्टमेंट करना होगा और कमाई आपकी मेहनत पर निर्भर करेगी
एलोवेरा की खेती के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
गेहूं से आटा बनाने के लिए आटा चक्की काफी पहले से लोकप्रिय बिजनेस रहा है अगर आप ग्रामीण स्तर पर छोटे से पैमाने पर इस व्यापार को शुरु करना चाहते हैं तो छोटी आटा पिसाई की मशीन लगा सकते हैं बिजली, मोटर और मशीन की कीमत मिलाकर इसमें करीब 50 हजार रुपये का पूंजी निवेश होता है इस व्यापार में मोटी कमाई है आजकल हर जगह बिजली की कमी खत्म हो चुकी है और पर्याप्त जगह बिजली उपलब्ध है
शहद बेहद पौष्टिक पदार्थ है इसकी मांग कभी कम नहीं हो सकती. शहद की प्राप्ति मधुमक्खियों से होती है शहद के लिए मधुमक्खी पालन लोकप्रिय कारोबार है. इसके लिए खुली जगह की जरुरत होती है, ताकी आप मधुमक्खियों को पालने के लिए पेटियां रख सकें अगर आप 200 से लेकर 300 तक की पेटियों में मधुमक्खियों का पालन करते हैं तो आपको 04 से 05 हजार स्क्वायर फीट जमीन की जरुरत पड़ती है
मधुमक्खी पालन उद्योग के बारे में अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े
जेट्रोफा जिसे रतनजोत भी कहते हैं ये एक बहुद्देशीय पौधा है जेट्रोफा बदलते वक्त में में किसानों के लिए ईंधन मुख्य आवश्यक्ता है विगत कुछ सालों से जेट्रोफा उर्जा का एक महत्वपूर्ण स्त्रोत बनकर सामने आया है इसकी खेती खेतों में, खेत की मेंडों पर या सिंचाई की नालियों के किनारे भी हो जाती है इसके लिए अनुपयोगी स्थान भी पर्याप्त होते हैं पूंजी निवेश भी अल्प होता है और मुनाफा भी शानदार होता है
रजनीगंधा फूल सजावट के काम आती है बाजार में इसकी काफी मांग है. इसकी खेती भारत के हर हिस्से में हो सकती है बीज की बजाय कलम रोप कर रजनीगंधा की खेती ज्यादा अच्छी मानी जाती है 01 हेक्टेयर जमीन पर करीब 12 क्विंटल रजनीगंधा की कलम लगाई जाती है रजनीगंधा की खेती में शुरुआती खर्च करीब डेढ़ लाख रुपये तक आता है
रजनीगंधा की खेती के साथ अच्छी बात यह है कि इसके फसल को कीटाणुओं और बीमारियों का कोई खतरा नहीं होता बेहतर प्लानिंग के साथ रजनीगंधा की खेती की जाए तो 02 लाख रुपये महीने तक कमाई की जा सकती है रजनीगंधा का पौधा लगातार तीन साल तक फसल प्रदान करता है
आप जो काजू का सेवन करते हैं, वो सीधे सीधे पेड़ से तोड़ कर आपके पास नहीं पहुंचता उसे प्रोसेसिंग की प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ता है, तब जाकर वो खाने लायक होती है इसे काजू प्रोसेसिंग मशीन कहते हैं ये मशीन 01 लाख रुपये से शुरु होती है काजू उत्पादक किसानों से कच्चा काजू लेकर इस मशीन के माध्यम से खाने लायक बनाकर बेचा जाए तो अच्छा खास मुनाफा हासिल होता है.
अधिकांश घरों में आजकल खाना बनाने में अदरक लहसुन बनाने का पेस्ट इस्तेमाल कर रहे हैं इससे लोगों का समय बचता है ऐसे में अदरक लहसुन का पेस्ट काफी लोकप्रिय होता जा रहा है और इसका कारोबार भी फल फूल रहा है महज 50 हजार रुपये की पूंजी लगाकर इस व्यापार को शुरु किया जा सकता है अदरक लहसुन की पिसाई के लिए छोटी सी मशीन आती है जिसकी कीमत 20 हजार रुपये से शुरु होती है
अब तो हर गांव में मिट्टी परीक्षण केंद्र खुलता जा रहा है. कई प्रदेशों में स्थानीय सरकारों ने पार्टनरशीप के तहत मिट्टी प्रशिक्षण केंद्र की शुरुआत की है ये किसानों के लिए बेहद उपयोगी होता है इससे उनके खेतों की मिट्टी की समय समय पर जांच होती रहती है जिससे उनकी उत्पादकता बरकरार रहती है मिट्टी परीक्षण केंद्र खोलने के लिए सरकार की ओर से 75 प्रतिशत तक अनुदान मिलता है मिट्टी परीक्षण केंद्र खोलने में करीब डेढ़ लाख रुपये तक पूंजी निवेश होता है और अच्छी आय होती है.
चावल मिल यानी राइस मिल यूं तो साधारण आदमी के वश का व्यापार नहीं होता क्योंकि इसमें पूंजी निवेश काफी बड़े पैमाने पर होता है लेकिन आजकल मिनी राइस मिल का इन दिनों काफी चलन हो गया है आजकल बाजार में 50 हजार रुपये से लेकर 75 हजार रुपये तक की कीमत में छोटी मशीने उपलब्ध हैं
जिनसे चावल निकाला जा सकता है इस मिनी मशीन की खास बात यह है कि इनसे किसी भी तरह के चावल के दाने निकाले जा सकते हैं धीरे धीरे देहातों में मिनी राइस मिल लोकप्रिय होता जा रहा है. लोग इस व्यापार में कम निवेश से अत्यधिक लाभ प्राप्त कर रहे हैं
अचार के कारोबार को मुनाफे का सौदा माना जाता है हमारे देश में हजारों तरह के अचार बनाए जाते हैं आजकल तो अचार के पाउच पैकेट बाजार में आ गए हैं अचार के कारोबार के लिए कोई ठोस पूंजी या अनुभव की जरुरत नहीं होती लेकिन स्वाद के बाद इसकी पैकेजिंग सबसे महत्वपूर्ण होता है अचार के व्यापार के लिए पाउच पैकिंग मशीन की जरुरत होती है दो लाख रुपये के निवेश में अचार का काम शुरु किया जा सकता है
आपके पास चाहे जिनती भी जमीन हो, आप उस पर सागवान, शीशम जैस लकड़ी देने वाले पेड़ लगाकर अच्छे खासे पैसे कमा सकते हैं फर्नीचर के लिए सागवान और शीशम की लकड़ियों की बाजार में काफी मांग है मांग की तुलना में उत्पादन भी कम ही है अगर आप चाहें तो अपनी खाली पड़ी जमीन या खेतों के इर्द गिर्द भी इन पेड़ों को लगाकर सालाना लाखों रुपये कमा सकते हैं, हालांकि इसमें थोड़ा सा इंतजार करना होता है सागवान और शीशम का एक पेड़ 07 साल के बाद 42 हजार रुपया देता है
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]]>पोल्ट्री फार्म के व्यापार के लिए जगह का सर्वाधिक महत्व है इस व्यापार में लिए बहुत बड़े जगह की आवश्यक्ता होती है पोल्ट्री फार्म के लिए बड़े और साफ सुथरे स्थान की जरुरत होती है स्थान के जरुरत की पूर्ति के लिए आपको जमीन खरीदना पड़ा तो यह व्यापार का सबसे महंगा हिस्सा हो सकता है
जमीन के लिए आपके सामने एक और विकल्प हो सकता है कि आप अपने घर के आस पास पड़े किसी खाली जमीन पर पोल्ट्री फार्म की स्थापना कर सकते हैं जमीन की लंबाई चौड़ाई पालने वाली मुर्गियों की संख्या पर भी निर्भर करता है
उदाहरण के लिए एक मुर्गी के पालन पोषण के लिए न्यूनतम 01 वर्ग फुट जमीन की आवश्यक्ता होती है अगर एक मुर्गी को 1.5 फुट जगह मिल जाए तो उसके अंडों या चूजों को नुकसान नहीं होगा यानी वो पूरी तरह से सुरक्षित रहेंगे
पोल्ट्री फार्म के कई प्रकार होते हैं इनका वर्णन निम्न प्रकार से है
बॉयलर फार्म : बॉयलर फार्म सामान्य पॉल्ट्री फार्म को ही कहते हैं इसमें चूजों को खरीद कर पालन पोषण किया जाता है यहां से 40 से 50 दिनों में मुर्गी तैयार कर बेच दिया जाता है
अंडा फार्म : इस फार्म के अंतर्गत आप अच्छी नस्ल की मुर्गियों का पालन पोषण कर उनके अंडों को बेचना होता है हमारी सलाह है कि आप शुरुआत बॉयलर फार्म से ही करें जैसे जैसे आपको मुनाफा मिलने लगें, आप अंडा फार्म का बिजनेस भी शुरु कर सकते हैं दोनों फार्म का बिजनेस आपको बेहतरीन मुनाफा दे सकता है
एक आदर्श पोल्ट्री फार्म के लिए कम से कम 1000 स्कवायर फिट जगह आवश्यक है इसमें आप 1000 चूजों का पालन कर सकते हैं पोल्ट्री फार्म की स्थापना के लिए वैसे स्थान का चयन करना चाहिए जो शहर से दूरी पर हो मुर्गियों को गाड़ियों के हॉर्न और प्रदूषण से परेशानी होती है, इसलिए कम आवागमन वाले स्थान पर ही इस बिजनेस की शुरुआत करें
जगह चुनने के पूर्व यह पूरी तरह से सुनिश्चित कर लें कि उक्त स्थान पर पानी की कमी नहीं हो मुर्गियों के उचित पोषण के लिए और साफ सफाई के लिए आपको पर्याप्त पानी की जरुरत होगी अगर आपको अपने घर के आस पास कोई जमीन मिल जाए तो पानी की समस्या नहीं होगी
जिस जगह पर पोल्ट्री फार्म का व्यापार शुरु करना हो, वहां की परिवहन व्यवस्था का जायजा जरुर लें किसी भी व्यापार की सफलता के लिए ट्रांसपोर्टेशन का बहुत महत्व है बहुत सारे लोग अपने घर के खाली पड़े जगह पर ही पोल्ट्री फार्म का व्यापार करते हैं इसे करने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन इसमें काफी बदबू आती है, इसलिए इसे अपने मकान के कैंपस से बाहर ही करें तो बेहतर रहेगा पोल्ट्री फार्म में बिजली की जरुरत महसूस होती है व्यापार शुरु करने से पहले कमर्शियल बिजली कनेक्शन जरुर ले लें
किसी भी व्यापार के लिए लाइसेंस अनिवार्य होता है कागजी कार्यवाही पूरा किए बगैर व्यापार शुरु करना सही नहीं होता पोल्ट्री फार्म के बिजनेस को एमएसएमई के माध्यम से रजिस्टर्ड कराना होगा एमएसएमई की मदद से व्यापार का निबंधन सरलतापूर्वक हो जाता है रजिस्ट्रेशन के लिए आपको सर्वप्रथम वेबसाइट पर जाना होगा यहां से आप ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन करा सकते हैं इस वेबसाइट पर जाने के बाद आपको एक फार्म नजर आएगा वहां पर आपको अपना आधार नंबर और नाम डालना होगा इसके बाद वहां वैलिडेट आधार का विकल्प नजर आएगा इस पर क्लिक करें क्लिक होते ही आपका आधार स्वीकृत हो जाता है और आगे की प्रक्रिया के लिए निर्देश मिलता है
इसके बाद वहां आपको अपने पोल्ट्री फार्म कम्पनी का नाम, कम्पनी का प्रकार, कार्यस्थल का पता, शहर, जिला, राज्य, पिन नंबर, मोबाइल नंबर, ईमेल एड्रेस, व्यापार शुरु करने की तारीख, बैंक डिटेल, कम्पनी डिटेल आदि जानकारी मांगी जाएगी, इसे सही सही भर दें अंतिम में आपसे कैप्चा मांगा जाएगा इसे भरने के बाद सबमिट बटन पर क्लिक करें.
इसके बाद एमएसएमई की ओर से सर्टिफिकेट जेनरेट हो जाता है. ये सर्टिफिकेट आपको ईमेल से प्राप्त हो जाता है आप इसका प्रिंट निकाल सकते हैं इस प्रिंट का जेरॉक्स करा कर पोल्ट्री फार्म के ऑफिस में लगा दें इस प्रक्रिया को पूरा करने के बाद आपकी कंपनी रजिस्टर्ड हो जाती है इसकी सहायता से आपकी सरकारी या गैर सरकारी संस्थानों से लोन भी ले सकते हैं.
नेशनल बैंक फोर एग्रीकल्चर एंड रुरल डेवलपमेंट यानी नाबार्ड ने पोल्ट्री फार्म के लिए मॉडल प्रोजेक्ट तैयार किया है इस रिपोर्ट के मुताबिक अगर आप एक अच्छा मुनाफा देने वाला पॉल्ट्री फार्म शुरु करना चाहते हैं तो कम से कम 10 हजार मुर्गियों से व्यापार शुरु करें इसमें आपको कम से कम 04 से 05 लाख रुपये तक का पूंजी निवेश करना होगा अगर आप इसके लिए बैंक लोन लेना चाहें तो लगभग 75 प्रतिशत तक लोन भी मिल सकता है
एक अनुमान के अनुसार 16 से 18 रुपये में एक स्वस्थ चूजा मिल जाता है नियमित पोषण और पौष्टिक आहार मिलने पर 40 दिनों में ये चूजा 40 दिनों में एक किलो का हो जाता है ये चूजे 04 महीनें में अंडे देना भी शुरु कर देते हैं. एक स्वस्थ चूजा डेढ़ साल में 300 अंडे तक देते हैं. चूजे की खरीद, उनके दाने, उनकी दवाईयां, किराया, बिजली का बिल, ट्रांसपोर्ट आदि का खर्च जोड़ने के बाद आपको आराम से 25 से 30 फीसदी तक मुनाफा हो सकता है
पोल्ट्री फार्म के लिए शेड का निमार्ण करना पड़ता है एक अनुमान के अनुसार औसतन 01 लाख रुपये तक का खर्च आ सकता है शेड बनवाने के लिए इस बात का ख्याल रखें कि शेड पूरी तरह से पक्का हो शेड बनाने के लिए पाइप, वेल्डिंग और छत का पूरा ख्याल रखें इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आपके फार्म में पानी न घुस सके पानी से बचाने के लिए 02 02 फीट की दीवार बनाकर पूरे फार्म को चारों तरफ जाल से पैक कराना होगा शेड बनवाने से पहले किसी आस पास के किसी नजदीकी पोल्ट्री फार्म को देख कर उससे आइडिया ले लें आप चाहें तो शेड बनाने वाले किसी एक्सपर्ट की मदद भी ले सकते हैं
अपने पॉल्ट्री फार्म को हमेशा पूरब से पश्चिम की दिशा में आयत के आकार में बनवाएं इस तरह की दिशा में फार्म बनवाने पर मुर्गियों को धूप कम लगती है और तापमान भी मेंटेन रहता है तापमान असंतुलित होने से मुर्गियों के स्वास्थ्य पर असर पड़ता है
पानी और बिजली की जरुरत
पोल्ट्री फार्म की शुरुआत करने के लिए बहुत सारे सामानों की आवश्यक्ता पड़ती है फार्म में 24 घंटे तक निर्बाध पानी की आपूर्ति होनी चाहिए इसके लिए आप कुंआ और बोरवेल का इंतजाम कर सकते हैं पानी की स्टोरेज के लिए आपको एक बड़ी टंकी और मुर्गियों के लिए बेहतरीन ड्रिंकिंग सिस्टम तैयार करने की जरुरत होती है इंतजाम ऐसा होना चाहिए कि सिर्फ एक बार बटन दबाने पर पानी मुर्गियों तक पहुंच जाए
ड्रिकिंग सिस्टम के सारे इक्विपमेंट आपको बाजार में किसी हार्डवेयर की दुकान पर मिल जाएगा इक्विपमेंट अच्छी क्वालिटी का ही खरीदें
फिडिंग सिस्टम से संबंधित सारे टूल्स बाजार में उपलब्ध है. इसे किसी अनुभवी एक्सपर्ट की मदद से अपने फार्म में सेट करा लिजिए
मुर्गियों को अंधेरा पसंद नहीं होता काफी रिसर्च के बाद पता चला है कि मुर्गियां अधेरे में भोजन पंसद नहीं करती जिस फार्म में ज्यादा रोशनी की व्यवस्था होती है, वहां की मुर्गियां जल्दी तैयार होती हैं और जहां प्रकाश कम होता है, वहां की मुर्गियां अपेक्षाकृत कमजोर होती हैं इसका एक कारण यह भी है कि लाइट की वजह से फार्म का तापमान मेंटेन रहता है लाइट होने की वजह से रात के समय में मुर्गियां अपना ज्यादा समय खाने में व्यतीत करती हैं रात के वक्त सन्नाटे का माहौल रहता है, इस वजह से मुर्गियां एकाग्र होकर भोजन ग्रहण करती हैं अगर लाइट की व्यवस्था अनियमित हो तो आपको जेनरेटर सेट का प्रबंध करना होगा जेनरेटर सेट की व्यवस्था आपको महंगी लगे तो सोलर सिस्टम का भी प्रयोग कर सकते हैं
यदि आप अंडे का फार्म शुरु करना चाह रहे हैं तो आपको चिकेन बॉक्स की जरुरत पड़ेगी यह अंडों को सुरक्षित रखने के लिए इस्तेमाल होता है मुर्गियां इस चिकेन बॉक्स में अच्छे से अंडे दे सकती हैं चिकेन बॉक्स में अंडे रखने से अंडे खराब नहीं होते और पूरी तरह से सुरक्षित रहते हैं
अक्सर पोल्ट्री फार्म में गंदगी की वजह से मक्खियां और कीड़े पनपने लगते हैं इसके लिए आपको फ्लाई ट्राई की आवश्यक्ता होती है इसके छिड़काव से फार्म में सफाई बनीं रहती है और मुर्गियों का पोषण प्रभावित नहीं होती इसके साथ ही एग वॉशर का प्रयोग भी जरुर करना चाहिए इस एक्विपमेंट और पानी की मदद से अंडे को साफ किया जाता है इस सफाई के बाद ही इसे बेचने के लिए मार्केट में भेज दिया जाता है
मुर्गियों को बेहतर और समुचित पालन पोषण उनके भोजन की क्वालिटी पर ही निर्भर होता है मुर्गियों के लिए हमेशा ही अच्छी क्वालिटी के फूड प्रोडक्ट का चयन करें मुर्गियों के लिए कैल्सियम और प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा की जरुरत होती है, इसलिए ऐसे ही चारे का चुनाव करें जिसमें ये तत्व भरपूर मात्रा में हो
एक चूजे के ठीक ठाक ढंग से विकसित और बड़ा होने में लगभग 40 से 50 दिन लग जाते हैं इन 40 दिनों तक चूजों का बहुत ख्याल रखना पड़ता है क्योंकि ये चूजे बहुत ही नाजुक होते हैं
शुरुआत के एक सप्ताह तक इन बच्चों को ध्यान पूर्वक पालन करना चाहिए. जब भी किसी नवजात चूजों को हाथों में लें तो उससे पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धोकर साफ कर लें उसके बाद ही चूजों को हाथ लगाएं
पोलट्री की अच्छी जानकारी रखने वाले एक डॉक्टर से सपंर्क बनाएं और समय समय पर चूजों की दवा और सूई आदि लगवाते रहें नियमित तौर पर प्रत्येक सप्ताह उनकी जांच कराते रहें ताकी उन्हें बीमारियों और असमय मरने से बचाया जा सके
मुर्गियां रात को ज्यादा खाना खाती है जरुरत से ज्यादा भोजन भी मुर्गियों के लिए नुकसानदेह होता है. रात को भोजन में कीड़े ज्यादा पनपते हैं इन कीड़ों से मुर्गियों को इंफेक्शन का खतरा बना रहता है, इसलिए अपने फार्म से कीड़ों को मारने का प्रबंध करें फार्म की नियमित साफ सफाई करें जिस पात्र में मुर्गियों को चारा और पानी दिया जाता है, उसकी हर दो से तीन दिन पर सफाई करें
ठंड के मौसम में हीटर या लाईट का प्रबंध करें
बढ़ती उम्र के चूजों का खास ख्याल रखें उन्हें कैल्सियम और प्रोटीन युक्त भोजन दें चूजों को दिन में कम से कम 03 बार और ज्यादा से ज्यादा 04 बार दाना डालें पशु चिकिसक की सलाह से उनके खाने में कीटाणु मारने वाले द्रव्य पदार्थ का इस्तेमाल करें. बॉयलर मुर्गियों को बीमारी जल्दी पकड़ता है इसलिए उनके स्वास्थ्य के प्रति हमेशा ध्यान रखें
कोई भी बिजनेस तभी सफल होता है जब उसे पूरी मेहनत, लगन और निष्ठा के साथ किया जाए शुरुआती दौर में थोड़ी सी असुविधा और परेशानी सामने आ सकती है लेकिन समय और अनुभव धीरे धीरे सब कुछ सीखा देता है पोल्ट्री फार्म के बिजनेस में एक अच्छी बात यह है कि इसमें आपको मुनाफे के लिए ज्यादा समय तक इंतजार नहीं करना होता आपका व्यापार 40 दिनों में रफ्तार पकड़ लेता है
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]]>ऐलोवेरा एक औषधीय किस्म का पौधा है, जिसकी मांग हमारे भारत में ही नहीं बल्कि हर देश में है। इसका नाम ग्वारपाठा भी है। अब तो आप इसे पहचान ही गए होंगे। आयुर्वेदिक औषधियों में इस पौधे का सबसे ज्यादा उपयोग होता है। ऐसे में आप ऐलोवेरा की खेती करके अपना एक अच्छा बिजनेस शुरू कर सकते हैं।
एलोवेरा की खेती आज बहुतायत में किसान कर रहे हैं, जिससे वह बेहतर मुनाफा भी कमा रहे हैं खासकर गुजरात और राजस्थान के किसानों में इसकी खेती को लेकर बहुत ललक देखी गई हैं बहुत से किसान इस खेती को करना चाहते हैं पर पर्याप्त जानकारी के आभाव में वह इसकी खेती नही कर पा रहे हैं इस लेख के माध्यम से हम एलोवेरा की खेती से जुड़े हर पहलू को जानेंगे जिनमे अनुकूल जलवायु, खाद, जुताई, सिचाई, पौधों की कटाई, लागत ,मुनाफा आदि शामिल है
सबसे पहले तो आपने स्वयं ने एक बात नोटिस की होगी कि ऐलोवेरा कई ऐसी जगहों पर भी उगा हुआ रहता है जहां इसे पानी नहीं मिलता। इस पौधे की यही खासियत है ये ऐसे क्षेत्रों में भी आसानी से उग जाता है। याद रहे आप इसके लिए जिस भी किसी भूमि का चयन करें वहां पानी अधिक मात्रा में नहीं होना चाहिए, क्योंकि ये इसकी अधिकता से खत्म हो सकता है या वृद्धि में कमी आ जाएगी। इसके साथ-साथ आपको अच्छी बालुई मिट्टी वाले क्षेत्र में खाद का उपयोग करके इसकी खेती को शुरू कर सकते हैं। ऐसा करने से आपको अच्छा परिणाम मिलेगा।
एलोवेरा एक अफ्रीकी मूल का पौधा है जो वहां से भारत आया है जैसा कि हम जानते हैं कि अफ्रीका एक गर्म जलवायु वाला क्षेत्र है इस वजह से यह भी माना जाता है कि एलोवेरा की खेती के लिए सबसे उपयुक्त जलवायु गर्म जलवायु है पर इसके कई अपवाद भी मिलते हैं एलोवेरा एक ऐसा पौधा है, जिसे आप किसी भी जलवायु में उगा सकते हैं, इससे इसके गुणवत्ता में कोई फर्क नही आएगा साथ ही इसके उत्पादन क्षमता पर भी कोई विशेष प्रकार का फर्क नही पड़ता है इसलिए इसका उत्पादन देश का कोई भी किसान कर सकता है
एलोवेरा के पौधे की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह किसी भी प्रकार के मिट्टी में फलफूल सकते हैं इसके लिए हर प्रकार की मिट्टी एक उपजाऊ मिट्टी है लेकिन यह पौधे दोमट मिट्टी और बलुई मिट्टी में कुछ ज्यादा अच्छी उपज देते है दोमत मिट्टी तो लगभग हर फसल के लिए एक उपजाऊ मिट्टी मानी जाती है यह मिट्टी चिकनी मिट्टी बालू के मिश्रण से बनती है बालू की मात्रा 40% होने के कारण इस मिट्टी में हवा के प्रवेश के लिए पर्याप्त जगह होती है, जिस वजह से यह मिट्टी बहुत उपजाऊ बन जाती है
यह मिट्टी मुख्यतः मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, एवं गुजरात के कुछ इलाकों में पाई जाती है इसके साथ ही जिस भी भूमि पर एलोवेरा की फसल की खेती करना चाहते हैं, वो सामान्य स्तर से थोड़ी ऊंची होना चाहिए इसका कारण यह है कि एलोवेरा की फसल में बारिश का पानी जमा होने से फसल को नुकसान होता है इस कारण आपको इस फसल के लिए एक ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए, जिससे बारिश का पानी खेत मे न रुके
एलोवेरा की खेती के लिए आपको यह बात जरूर ध्यान में रखना होगा की आप सही प्रजाति की ऐलोवेरा पौधे की चयन करें वैसे तो एलोवेरा की कई सारी प्रजातियां पाई जाती है जिसकी आप खेती कर सकते हो एलोवेरा के बहुत से ब्रीड आज बाजार में उपलब्ध हैं जिनमे से कुछ ही ऐसे हैं जिनकी खेती करने से आप अच्छी उपज पा सकते हैं
बाकी के सभी ब्रीड उतनी उपज भी नही देते हैं साथ जी उनमे रोग ग्रसित होने जैसी अनेक समस्याएं होती हैं, जिनका सामना आपको खेती करने के दौरान करना पड़ेगा इसके साथ बाजार में भी हर तरह के एलोवेरा की मांग नही होती है एलोवेरा की कुछ ऐसी हाइब्रिड प्रजाति है, जिनकी डिमांड बाजार में बहुत ज्यादा होती है
इसलिए जब भी एलोवेरा की खेती करें, उसके लिए एक अच्छे किस्म की हाइब्रिड एलोवेरा का उपयोग करें आप अगर सही प्रजाति की एलोवेरा पौधे की चयन करेंगे तो आप ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकते है क्युकी आपका पूरा व्यवसाय एलोवेरा के सही प्रजाति के पौधे पे निर्भर करता है वरना आपको भरी नुकसान भी हो सकता हैं
हाइब्रिड एलोवेरा की खेती करने के कई फायदे मिलते हैं
1) हाइब्रिड एलोवेरा के पौधों में रोगों से लड़ने की क्षमता बाकी की तुलना में कही अधिक होती है
2) हाइब्रिड एलोवेरा उत्पादन के मामले में भी बाकी एलोवेरा की किस्मो से कहीं आगे होता है
एलोवेरा की खेती बाजार के मांग के हिसाब से करने पर आपको ग्राहक ढूढने में ज्यादा परेशानियों का सामना नही करना पड़ेगा साथ ही आपको आपके उपज की अच्छी कीमत भी मिल सकेगी जिससे आप भारी नुकसान उठाने से बच सकेंगे
एलोवेरा की खेती के लिए बाजार में कई प्रकार के हाइब्रिड पौधे की वैराइटी उपलब्ध है मगर आप यह 2 वैराइटी के एलोवेरा का पौधे का चयन करें यह वैराइटी नीचे निम्नलिखित है
● IEC 111269
● IEC 111271
यदि आप एलोवेरा की खेती करना चाहते हैं तो आप भी इन दो नस्लों में से किसी का भी चुनाव कर सकते हैं इन नस्लों में अच्छी उपज की संभावना रहती है, जिससे फसल की अच्छी कीमत भी मिलती है अगर आप यह 2 वैराइटी के एलोवेरा का पौधे का चयन करते है तो आपको कई फायदे इनसे मिलें गे जैसे की कम समाये में ज्यादा बढ़ते है वजन दार होते है कीड़े मकोड़े लगने का भी डर नहीं होता और इनकी डिमांड मार्किट में भी बहुत अच्छी है इस ब्रीड से 1 एकड़ जमीन में आप आराम से 17 से 20 ton एलोवेरा ऊगा सकते है
एलोवेरा की फसल की बुवाई से पहले खेत को तैयार करना बहुत जरूरी होता है ,ताकि फसल को उसकी जरूरत के अनुसार विकास करने का अनुकूल वातावरण मिल सके एलोवेरा के पौधे को खेत में लगाने से पहले खेत को तैयार किया जाता है वैसे तो एलोवेरा की खेती साल के किसी भी मौसम में शुरू की जा सकती है, क्योंकि इसे ज्यादा पानी की जरूरत नही होती है, लेकिन फिर भी इसकी खेती शुरू करने के लिए फरवरी से अप्रैल माह का वक़्त बहुत अनुकूल माना जाता है
सबसे पहले आपको जिस जगह खेती करनी है वहां अच्छी तरह से साफ-सफाई करलें। जाड़ियां, कांटें आदि वहां से हटाले उसके बाद आपको अपने खेत की जुताई करनी होगी कम से कम 1 बार तो जरूर करें इसके बाद आपको 1 हेक्टयर भूमि में 10 टन गोबर की खाद डालना पड़ेगा यह डालने के बाद एक बार खेत की जुताई फिर से कर दें, ताकि यह गोबर की खाद खेत मे अच्छी तरह से मिल जाये
इसके बाद यदि आपके खेत की उपजाऊ कम है तो आप को आपने खेत मे 130 किलोग्राम यूरिया,160 किलोग्राम फास्फोरस, 33 किलोग्राम पोटाश का छिड़काव भी कर सकते हैं यह अनुपात एक हेक्टयर भूमि के लिए है यदि इससे कम भूमि और खेती करना चाहते है आप इसी अनुपात में भूमि के हिसाब से ये उर्वरक इस्तेमाल कर सकते हैं
उसके बाद आपको रोपाई करनी होगी। एलोवेरा की रोपाई राइजोम के माध्यम से की जाती है। इसकी उगने तक आपको केवल तीन से चार बार इसको पानी देना होता है, क्योंकि हमने आपको बता ही दिया था कि इस पौधे को पानी की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। इसके साथ-साथ आपको बीच-बीच में इसकी देखरेख करनी होगी, क्योंकि ऐसे कई सारे किट हैं जैसे पटरी कीट आदि जो इन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं। इसके लिए आपको समय पर कीटनाशक का उपयोग करना होगा। इतना ही नहीं जैसे हर खेती में खरपतवार आदि हटाई जाती है ठिक वैसे ही आपको इसकी भी सुरक्षा करनी है ताकि इसकी वृद्धि में रूकावट ना आए। इसी तरह से आप आसानी से एलोवेरा की खेती कर सकते हैं।
जो लोग रेगिस्तान इलाके में रहते है वहा उन लोगो के लिए तो एलोवेरा की खेती करना बहुत ही आसान होता है क्युकी एलोवेरा गरम तापमान और रेतीले मिटटी में बहुत ही आसानी से उग जाता है जैसे की राजस्थान और उसके अगल बगल क्षेत्र में लोग एलोवेरा की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं एलोवेरा की खेती करना बाकी दूसरे फसलों के मुकाबले बहुत ही आसान होता है क्युकी खेती के लिए जमीन तैयार करने में हमें कम पानी फ़र्टिलाइज़र दवा की जरूरत पड़ती है
एलोवेरा के किसी भी पौधे को पूर्ण रूप से विकसित होने में 10-12 महीने के भीतर अच्छी खासी वृद्धि हो जाती है। इतने वक़्त के बाद यह पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं एलोवेरा की कटाई करते वक्त बहुत से लोग इस बात का ध्यान नहीं रखते कि उसे काटना कैसे है, तो आप इस बात का हमेशा ध्यान रखें कि उसे कभी भी खींचके जड़ से उखाडे नहीं क्युकी उसी जड़ से दुबारा एलोवेरा उगेगा और अगर आप जड़ से काट देंगे तो दुबारा एलोवेरा उग नहीं पाएगा और आपको नुकसान हो सकता है
यह बात का जरूर ध्यान रखे पौधों के पत्तों की जब कटाई करें तो उनके ऊपरी पत्तो को न काटे, क्योंकि यह नए पत्ते होते है और पूर्ण विकसित नही होते हैं हर पौधे के नीचे के कुछ पत्तों को तोड़ें इसके 45 दिन बाद जो नए पत्ते होते है,वो भी तोड़ने के लिए तैयार हो जाते हैं इसके बाद इन्हें भी तोड़ सकते हैं
यह प्रक्रिया ऐसे ही चलती रहती है ऐसा करने से आप बिना एलोवेरा की रोपाई किये हुये 2 से 4 साल तक कटाई कर लाभ उठा सकते हैं यदि एक हेक्टयर भूमि में आपने पौधों को रोपित किया था, तो प्रतिवर्ष इससे 60 टन ताजा पत्तों का उत्पादन किया जा सकता है इसके उपज के दूसरे और तीसरे वर्ष में इनका उत्पादन 20% बढ़ जाता है
एलोवेरा में खेत मे पैदा होने वाले खरपतवार आदि को समय समय पर निकालते रहें, नही तो इस पर खरपतवार से इनका विकास रुक सकता है इसके साथ ही क्यारियां में समय समय पर मिट्टी चढ़ाते रहें, जिससे पौधों के झुकाव से भी बचाव होता है, साथ ही पानी रुकने की संभावना भी कम हो जाती है
इनके पत्तों पर कभी कभी पीले धारियों का रोग देखने को मिलता है यह रोग फंफूद के कारण होता है इसको दूर करने के लिए मैकोजेब रेडीमिल, डायटम एम- 45 कक उपयोग कर सकते हैं बारिश के पानी का खेत से निकलने का प्रबंध तुरंत करना जरूरी है, नही तो यह आपकी फसल को बर्बाद कर सकता है
एलोवेरा की फसल तैयार होने के बाद बरी आती है इसे बेचने की यहाँ पर यह ध्यान देना जरूरी है कि एलोवेरा की खेती करने के बाद नही बल्कि खेती शुरू करने के पहले ही आपको अपना ग्राहक ढूंढना जरूरी है लेकिन आपको इसकी फिक्र करने की जरूरत नहीं है। एलोवेरा की औषधिय दवा बनाने के लिए बहुत सी कम्पनियां मांग करती है।
जो भी इस तरह की कम्पनियां हैं आपको उनसे सम्पर्क करना होगा और उन्हें इसे बेचना होगा। आप चाहे तो किसी कंपनी से कोई कॉन्ट्रैक्ट कर सकते है, उसके बाद ही खेती शुरू करें इसके साथ ही कई ऐसी कंपनिया है जो एलोवेरा से जुडे उत्पाद बनाती ही आप उनसे भी संपर्क कर सकते हैं
कुछ प्रसिद्ध कंपनियां जो एलोवेरा को किसानों से खरीदती हैं
पतंजलि
डाबर
वैधनाथ
इसके अलावा भी कुछ लोकल कंपनियां होती हैं जो एलोवेरा को खरीदती हैं
इतना ही नहीं आप एलोवेरा की खेती करते-करते भी इन पौधों को बेच सकते हो, क्योंकि इसका उपयोग हर घर में किया जाता है। इतना ही नहीं एलोवेरा से कई तरह के प्रोडक्ट तैयार होते हैं जैसे सौंदर्य के लिए फेस क्रिम। एलोवेरा से चर्म रोग के लिए भी कई सारी दवाएं बनती है। एलोवेरा का ज्यूस भी बनाया जाता है आप इसे इसके लिए भी सेल कर सकते हैं। आप इसकी मार्केटिंग ओनलाइन मार्केट में भी कर सकते हैं।
एलोवेरा की खेती से आपको बहुत लाभ है एलोवेरा की खेती करने के बाद उससे कमाई करने के दो जरिये होते हैं एलोवेरा के पत्तों को बेच कर कमाईकर सकते हैं आप उन्हें बेचकर इसकी 60 से 70 हजार रुपये की इंवेस्टमेंट की 10-12 माह की खेती में 8 से 10 लाख रुपये तक कमा लेते हैं।
इसका मतलब आप कम से कम हर माह के 70 से 80 हजार की कमाई का तो सोचके चल सकते हो। इतना ही नहीं आप अपनी इस खेती से कई काम कर सकते हो जैसे इसके कुछ प्रोडक्ट बनाकर बेचना आदि। वही आज कल एलोवेरा के जूस की मांग भी अच्छी बढ़ रही है तो आप चाहे तो इसका जूस भी बनाकर बेच सकते हैं एलोवेरा के पत्तों की कीमत लगभग 4000 रु/ टन होती है
यदि आप इसका जूस निकालकर किसी और कंपनी को देते हैं त यह आपको 150रु /लीटर पड़ जायेगा ऐसी कई सारी चीजें मार्केट में उपलब्ध है जिसे एलोवेरा से बनाई जाती है। आप इसके जूस का प्रोडक्शन कर सकते हो। इसके साथ ही आप फेस के लिए एलोवेरा जेल बनाकर भी बेच सकते हो। एलोवेरा एक औषधिय पौधा है और सबसे ज्यादा औषधिय पौधों में एलोवेरा की ही मांग है। इसीलिए आप इसका एक अच्छा सा बिजनेस शुरू कर सकते हो।
इस तरह से इस के द्वारा आप सालाना 3-4 लाख रु एलोवेरा की खेती से कमा सकते हैं
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]]>सबसे पहले आपके किसी खूले स्थान का चयन करना होगा जहां आप मधुमक्खियों को सुरक्षित रख सकें। जमीन आपको आपकी मधुमक्खियों के अनुसार लेनी होगी। 150 से दो सौ मधुमक्खियों की पेटी रखने के लिए आपको कम से कम दो से ढाई हजार square फिट की जमीन लेनी होगी।इसके बाद आपको ऐसी विदेशी मधुमक्खियां खरीदनी होगी जिनसे अच्छे खासे शहद का प्रोडक्शन हो सके। ये मधुमक्खियां आपको पेटी के हिसाब से मिलती है। अच्छे शहद के प्रोडक्शन के लिए आप एपिस मेलीफेरा, एपिस फ्लोरिया, एपिस इंडिका और एपिस डोरसाला आदि प्रजाति की मधुमक्खियां खरीद सकते हैं, क्योंकि इनसे आप अच्छी मात्रा में शहद प्राप्त कर पाएंगे।
मधुमक्खियां आपको प्रति पेटी चार हजार रुपये तक मिलेगी, जिनमें तीन सौ के आस-पास मधुमक्खियां होगी। अब आपको कुछ संसाधन भी जुटाने होंगे जिनमें चाकू, ड्रम, रिमूविंग मशीन, और हाथों में सुरक्षा के लिए दस्ताने आदि की व्यवस्था करनी होगी। आपको शहद निकालने की मशीन 25 हजार तक मिल जाएगी। इसके बाद कुछ सामान्य संसाधन और जुटाने होंगे जिनके बारें में आप स्वयं भी जानते ही हैं।
हमारे देश में मधुमक्खियों की कई प्रजातियां मौजूद है लेकिन मधुमक्खी पालन के लिए कुछ प्रजाति की मधुमक्खियां ही पालन के लिए इस्तेमाल में लाई जाती है एपिस मेलीफेरा मधुमक्खी उनमे से एक है इन्हें आप आसानी से पाल सकते है और सब से अच्छी बात तो यह है की एपिस मेलीफेरा मधुमक्खी एक बॉक्स से साल भर में 70 से 80 किलो शहद दे सकती हैं अपने मधुमक्खी फार्म में इस प्रजाति की मधुमक्खी पालन करे क्यकि की यह मधुमक्खियां सबसे ज्यादा सहद और अंडे देने वाली प्रजाति है इस प्रजाति की पालन करके आपको सब से ज्यादा लाभ हो सकता है
मधुमक्खी पालन करने के लिए सब से अच्छी समय नवंबर से जनुअरी के बिच होती है इससे पहले ही आप अपने मधुमक्खी फार्म में सभी चीजों की व्यवस्था करले और सही समय आने पर मधुमक्खी पालन करना शुरू कर दे इसके अलावा आप यह भी ध्यान रखे की मधुमक्खी पालन आप उस जगह में करे जहां आस पास अच्छी खासी हरियाली और फूले हो क्युकी मधुमक्खियां को शहद बनाने के लिए फूलों की अवयस्कता होती वो जितना फूल का रस पीयेगी उतना ही अधिक शहद हमें प्राप्त होगा
मधुमक्खी पालन सीखने का सबसे अच्छा तरीका तो ये है कि अगर आपके किसी जान पहचान वाले के या आपके नजदीक कोई मधुमक्खी पालन का व्यवसाय हो, तो वहां जाकर सीख लें। यदि आपके पास ऐसी व्यवस्था नहीं है, तो आप सरकारी प्रशिक्षण ले सकते हैं। मधुमक्खी पालन के बिजनेस को सरकार भी प्रोत्साहन देती है। इसके लिए आपको लोन तो मिलता ही है और आप चार से पांच हजार के शुल्क में आराम से मधुमक्खी पालन की ट्रेनिंग कर सकते हैं। ऐसा करने के बाद आपके लिए मधुमक्खी पालन करना काफी सरल हो जाएगा।
दोस्तों जब मधुमक्खी के छत्ते शहद से पूरी तरह भर जाएं तो आप समझ जाएं कि आपके शहद निकालने का वक्त आ गया है। कई जने हाथों से भी शहद निकालते हैं लेकिन हमने आपको शहद निकालने की मशीन के बारें में बताया जिनसे आप शहद निकाल सकते हो। उसके माध्यम से ही निकालना है, क्योंकि आपको पूरी सुरक्षा का ध्यान रखना है।
जब मधुमक्खियां पेटी में ना हो तब आपको शहद के छत्तों को चाकू से सावधानी पूर्वक निकालना होगा। उसके बाद में बहुत ही सरल प्रक्रिया है। आपको मशीन में कुछ खांचें नजर आएंगे आप उन खांचों में अच्छी तरह इन छत्तों को जमाना है, जिनमें शहद भरा हुआ है। ऐसा करने के बाद आपको मशीन ओन करनी है, बड़ी आसानी से शहद निकल जाएगा और उसे आप अपने पात्र में ले लें।
आपके पास कुल दो सौ के आस-पास पेटियां होगी, तब आप एक पेटी से 2.5 kg के आस-पास शहद प्राप्त कर पाएंगे यानि कि दो सौ पेटियों से 500 से 550 kg के आस-पास शहद। मार्केट से शहद की रेट 100 से 150 रुपये kg होती है। आप आसानी से 500 kg शहद पर 50 से 75 हज़ार रुपये तक कमा सकते हैं। इतना ही नहीं 15 दिन के भीतर आपके फिर शहद तैयार हो जाएगा। आप फिर से इसका प्रोडक्शन करके इसे सेल करें।
जब आप अपने शहद को अच्छी तरह से तैयार कर देते हैं, उसके बाद आपको उसे बेचना होता है। आजकल शहरों में शुद्ध शहद की कमी है, यदि आप चाहें तो अपने शहद को अच्छी पैकिंग करके शहरों में ज्यादातर बेच सकते हो। इसके अलावा आप जो भी हाॅस्पिटल होते हैं उनके मेडिकल आदि पर अपने प्रोडक्ट के लिए बात कर सकते हैं, क्योंकि मेडिकल पर भी शहद दवा के रूप में सेल होता है।
इसके अलावा आप ओनलाइन मार्केट में अपनी कम्पनी का एक स्टोर बनाकर ओनलाइन मार्केटिंग के द्वारा अपने प्रोडक्ट को कई मात्रा में बेच सकते हो। आप अपने जान पहचान वाले लोगों से सम्पर्क करके उन्हें सीधे ही शहद बेच सकते हैं। इसके साथ ही यदि कोई चाहता है कि वो आपके प्रोडक्ट को खरीदके अपनी एक कम्पनी बनाकर बेचे तो आप उससे डील कर सकते हैं। ऐसा करने से आपके उत्पाद का एक पर्मानेंट ग्राहक बन
मधुमक्खी पालन में सफल होने के लिए मधुमक्खी पालक भाई कुछ बताओ का पूरा ख्याल रखे
1) मधुमक्खी पालन करने के लिए सही समाये का निर्णय करे आप कब करे मधुमक्खी पालन की शुरुवात यह सब कुछ सोच समझ के करे
2) मधुमक्खी पालन के लिए सही प्रजाति का चुनाव करना जरूरी होता है इसका ध्यान रखे
3) मधुमक्खी के छत्ते से शहद निकलने के लिए सब से सटीक समाये का चयन करे अक्सर इसी में लोग न समझी कर बैठते है और जल्दी बजी दिखाते है शहद निकलने में और इसी करण उन्हें व्यापार में ज्यादा लाभ नहीं हो पाता
4) शहद निकालने से पहले यह बात जरूर ध्यान में रखे की मधुमक्खी के छत्ते में मधुमक्खी यह उनके अंडे नहीं हो तभी आप शहद निकाले
5) मधुमक्खी के छत्ते से बहुत ही सावधानी के साथ ही शहद निकाले अगर आपको शहद निकालने की जानकारी नहीं हैं तो आप मधुमक्खी पालक की मदद से शहद निकलवा सकते है
6) जिस जगह आप मधुमक्खी पालन कर रहे है वो जगह साफ़ और स्वच्छ होना जरूरी है क्युकी कई तरह के कीड़े मकोड़े से मधुमक्खियों को अधिक नुकसान हो सकता है
7) मधुमक्खियों को रोग से बचाने के लिए आप पानी में शक्कर मिलाकर दे इनसे मधुमक्खियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता अच्छी रहती है
मधुमक्खी पालन व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए सरकार दुवारा वेबसाइट जारी किया गया है इस वेबसाइट के ज़रिया आप मधुमक्खी प्रशिक्षण केन्द्र का address हासिल कर सकते है और मधुमक्खी पालन training यहाँ से ले सकते हैं www.kvic.org.in/
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]]>The post मछली पालन के लिए मछलियों की प्रजातियां की जानकारी Fish Breeds in India first appeared on ShubhVaani.
]]>आज में आप लोगो को मुख्य रूप से जो मछलियों की प्रजाति लोग मछली पालन के लिए पसंद करते हैं उसके बारे में बताने जा रहा हूं मैंने आपने पिछले लेख में मछली पालन कैसे किया जाता है इसका पूरा तरीका मैं ने बताया था आज मैं आपको मछलियों के अलग अलग प्रजाति के बारे में बताने जा रहा हूं किस नस्ल की मछलियां पालन कर के अपना बिजनेस बढ़ा सकते हैं और ज्यादा से ज्यादा प्रौफिट कामा सकते हैं
मछलियों के प्रमुख नस्ले भारत में पाई जाने वाली :
1) रोहू मछली – यह नस्ल की मछलियां भारत में बहुत ही लोकप्रिय मछलियों में से एक मानी जाती है यह मछलियां दक्षिण एशिया के नदियों में पाई जाती है यह कार्प परिवार की मछली की एक महत्त्वपूर्ण प्रजाति है
यह नस्ल की मछली रोहू, रुई, या रोहो के नाम से भी जाना जाता है यह मछलिया ज्यादा तर पानी में पैदा होने वाले पौधे यह वनस्पति को खाकर अपना गुजारा कर लेती है इनकी लम्बाई 1 मीटर तक होती है
रोहू मछलियां दूसरे साल के दौरान प्रजनन के लिए रेडी हो जाती है अप्रैल-सितम्बर के समाये में यह अंडे देती है यह नस्ल की मछलियां स्वाभाविक रूप से नदियों में और बंडों में विशेष परिस्थितियों में पैदा होती है
मछली पालन के लिए यह प्रजाति की मछली उत्पादित बीज मौसमी या बारहमासी अनावश्यक तालाबों में आसानी से पाला जा सकता है यह मछलियां एक साल में 1 kilo से ज्यादा बढ़ जाती हैं
2) कतला मछलियां – यह नस्ल की मछलियां भारतीय प्रमुख कार्प प्रजाति मानी जाती है यह सब से तेज़ी से बढ़ने वाली मछली की नस्ल है यह मछलिया मछली पालन करने के लिए बहुत ही ज्यादा लाभदायक माना जाता है
यह नस्ल की मछली भारत,पाकिस्तान,बांग्लादेश में बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय है हमारे भारत में इसे भाकुरा नाम से भी पहचाना जाता है इसका शरीर चौड़ा,सिर लम्बा और पंख काले रंग की होती है यह अपना खाना पानी के ऊपरी सतह से खाती है
कतली मछलियां मानसून के समाये प्रजनन के लिए तैयार हो जाती है यह साल में एक बार अंडे देती है और यह अपनी शरीर की वजन के हिसाब से 75000 से अधिक अंडे देती है
यह मछलियां मानसून के मौसम में नदियों में स्वाभाविक रूप से नस्लों और बंडों में नियंत्रण की स्थिति के तहत भी पैदा हो सकती है
इन मछलियों को आप मछली पालन के लिए साफ और गहरे पानी के टैंकों और तालाबों में आराम से पल सकते है इन मछलियों का वजन एक साल में 1 से 1.5 किलो तक बहुत ही तेज़ी से बढ़ जाता है
3) सिल्वर कार्प – सिल्वर कार्प मछलियां मूल रूप से दक्षिण और मध्य चीन में पाई जाने वाली नस्ल में से है मगर अब यह मछलियां हमारे भारत में भी उपलब्ध है यह मछलियां सिल्वर रंग की होती है यह अपना भोजन पानी की उपरि सतह में आकर करती है
यह पानी में उगने वाले पौधे और सड़े गले जाल तेल केक और चावल की मिश्रण खाकर आसानी से पचा लेती है यह मछलियां तालाब में अच्छे प्रजनन नहीं करती मगर इन्हें hypophysation के तकनीक से मानसून में इन्हें तालाबों में प्रजनन करवाया जाता है
यह मछलियां को चीन में परिपक्व होने में लगभग 2-4 साल लग जाता हैं, जबकि भारत में यह 2 साल के अंदर ही परिपक्व हो जाती है यह मछली में यह खास बात है की यह सब प्रजाति की मछली से पहले परिपक्व होती है और यह मई और जून के महीने में अंडे देने के लिए तैयार हो जाती है यह अपनी शरीर की वजन के हिसाब से 90,000 से 1 लाख तक अंडे देती है
तालाब से मछली पालन करने के एक साल में अंदर इनका वजन 1 से 1.5 किलो हो जाता हैं
4) कॉमन कार्प – यह प्रजाति की मछली विशेष रूप से चीन के मूल निवासी कार्प है मगर अब यह मछलियां दुनिया भर में सबसे पालतू और खेती वाली कार्प प्रजातियां मानी जाती है यह मछलियां हमेशा अपने भोजन की तलाश में तालाब के नीचे तल को खोद देता है।
इसकी तालाब के नीचे खोदने की यह आदत तालाबों की उत्पादकता को बनाए रखने में काफी मदद करती है और इसलिए अन्य मछलियों की प्रजातियों के साथ कॉमन कार्प को तालाब में पलना बहुत ही फायदामंद होता है
यह मछलियां ज्यादा तर पानी के नीचे गहराई में रहने वाली प्रजाति है जो की सड़ी गली फल और पौधे खाकर अपना गुजारा कर लेती है मछली पालन के दौरान यह एक साल के अंदर ही 1 किलो से ज्यादा वजन इनका हो जाता है
इन मछलियों का रंग गहरा सुनहरा पीली होती है और इनकी लम्बाई 10 से 14 इंच तक होती है यह मछलियां साल में 2 बार अंडे देती है मार्च से अप्रैल और सितम्बर से अक्टूबर में अंडे देती है यह मछलियां अपने शरीर की वजन के हिसाब से 85,000 से 95,000 तक अंडे देती है मछली पालन के लिए एक एकड़ में 20 हज़ार कॉमन कार्प पाला जा सकता हैं
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]]>मछली पालन का व्यापार भारत के लगभग सभी राज्यों में होता है भारत में लगभग 70 प्रतिशत लोग मछली का सेवन करते है मछली पालन का व्यापार कर के भारत के ऐसे कई शहर है जहाँ के 25 प्रतिशत आबादी इसी रोजगार से अपना पालन करते है मछली पालन के व्यवसाय को हम दूसरे भाषा में fish farming भी बोलते है
भारत के लगभग आधी से ज्यादा जनसंख्या मछली खाती है और मछली पालन का व्यवसाय उन क्षेत्रों के लिए और भी फायदेमंद है जहाँ पे नदियां ,झरने,तालाब का क्षेत्र आता हो जहाँ पे इन सभी स्त्रोतों की सुविधा अच्छी मिलती है,वहां पर मछली पालन का व्यापार करना और भी आसन हो जाता है
ऐसे तो मछली पालन करने के लिए आप लोगो को कुछ जमीन और छोटे –छोटे तालाबों की भी जरूरत होती है जिसमे हम मछली को कुछ दिनों के लिए रख सकते है मछली पालन के व्यापार करने के लिए कोई ज्यादा पूंजी की जरूरत नही होती है अगर हम चाहे तो कम पूंजी में भी इसके व्यापार को चालू कर सकते है और जादा से जादा मुनाफा कमा सकते है
आपके दिमाग में एक बात आती होगी की हम मछली पालन का व्यवसाय क्यों करे ऐसा क्या है मछली पालन के व्यापार में क्या फायदा है? मछली पालन के व्यवसाय करने से ,और ऐसे कई बाते जो लोगो के दिमाग में आ रही होंगी जो लोग पहली बार इस व्यवसाय को कर रहे होंगे या ऐसे वे लोग जिनको कोई आईडिया नही होगा मछली पालन के व्यापार का तो आपको ये बताना चाहते है की
मछली पालन का व्यवसाय भारत में जितने प्रतिशत में हो रहा है उससे कई ज्यादा प्रतिशत में दुसरे देशों में भी हो रहा है,मछली से मिलने वाले एनर्जी पौष्टिक आहार जिससे हमारे शरीर और रोगों में दवा के रूप में आने वाले कई फायेदे है इससे मछली का मांग दिन पर दिन बढ़ता ही जा रहा है आज –कल तो लोग अपने यहाँ पे ही तालब या छोटे –छोटे फार्म बनाकर ही इस व्यवसाय को बढ़ावा दे रहे है,और ज्यादा से ज्यादा फायदा कमा रहे है
यहाँ तक की मछलियों के भी कई प्रजातियां होती है,जिसके हर प्रजाति का कोई न कोई अपना ही कुछ विशेष गुण होता है ये अपने विशेष गुण के चलते बाज़ार में जादा ही प्रचलित होते है लोग इनकी मांग जादा करते है ये सभी फायदे मछली पालन के व्यवसाय को बहुत फायदे में लेकर जाता है
अगर आप मछली पालन में घुस रहे है और आपको ज्यादा जानकारी नहीं है की किस नस्ल की मछलियों को पालना चाहिए तो हम आपको बताते है आपको शुरुआत में टूना ,सिल्वर क्रॉप , रोहू , कॉमन क्रॉप आदि मछलियां पालनी चाहिए।
इनकी डिमांड हमेशा ही मार्किट में बनी रहती है आप मछलियों को पालने के लिए मत्स्य पालन विभाग से मछली प्राप्त कर सकते है। यह ज्यादातर शहरों में मत्स्य पालकों की मदद के लिए उपलब्ध है। यहाँ पर जाकर आप मत्स्य पालन व्यवसाय से जुड़ी और भी जानकारी पा सकते है।
मछली पालन के लिए मछलियों के प्रमुख प्रजातियां भारत में पाई जाने वाली यहाँ से पढ़े
1) तालाब के माहौल में ढलने की छमता – हमलोग ने जो तालाब बना रखा है मछली पालन के लिए वो तालाब कैसा है उसमे बारो महीना पानी रहता है यह सिर्फ बारिश के मौसम में पानी रहता है इस प्रस्थिति को हमें धयान में रखना होगा
2) तेज़ी से बढ़ने की छमता – हमें यह भी ध्यान रखना होगा अगर हम व्यावासिक रूप से मछली पालन कर रहे है जिस मछली की प्रजाति को हम पल रहे है उसकी बढ़ने की छमता अच्छी होनी चाहिए अगर मछलियां की growth अच्छी नहीं होगी तो हमें मछली पालन में ज्यादा फ़ायदा नहीं हो पायेगा और अगर तालाब मौसमी है सिर्फ बारिश के टाइम में ही तालाब में पानी रहता है 12 महीना नहीं रह पाता तो हमें मछली की growth में ज्यादा ध्यान देना होगा हमें उस मछली की प्रजाति को तालाब में पालन करना होगा जिसकी growth अच्छी हो
3) तालाबों में उपलब्ध खाने को खा सकने की छमता – आम तोर पे जो 12 मिहिनो के जो स्थाई तालाब होते है उनमे सहज रूप में कुछ खाना उपलब्ध रहता है जिन्हे मछलियां कहती है और जिन्दा रहती है मगर कई मछलियों की प्रजाति ऐसे भी होती है जो तालाब में उपलब्ध खाने को नहीं कहती है इन्हे अलग से खाना देना पड़ता है इन् बातो का भी हमें धयान रखना पड़ता है
4) जल्दी बीमार न पड़ने की छमता – जिस माहौल में हम मछली को पाल रहे है उस माहौल में ढलने की छमता होनी चाहिए इस लिए ऐसी मछली का चुनाव करे जो सब वातावरण में आसानी से ढल सके और हमें ज्यादा से ज्यादा लाभ हो सके
5) बाजार में मांग और दाम – यह बहुत ही महत्वपूर्ण बात है आखिर हम मछली पालन कर क्यों रहे है व्यापार के लिए और मुनाफे के लिए अगर हम जिस मछली की पालन कर रहे है और उस मछली की बाजार में मांग नहीं है तो हमें उस मछली को पालने का कोई फायदा नहीं है हमें उन् मछलियों की पालन करना है जिसकी मांग हमेशा मज़ार में रहती है
गोबर कर छिरकाव करना – अगर जिस तालाब में आप मछली पालन कर रहे है उसमे 1 महीना पहले से ही गोबर का छिरकाव करदे तो जब हम बीज डालेंगे तो उनके लिए वह भरपूर खाना पहले से ही उपलब्ध रहती है 1 हेक्टर में आप 1000 किलो गोबर का छिरकाव कर सकते है
चोकर – मछलिओं को चोकर देना भी बहुत अच्छा होता है जब हम तालाब में बीज डालते है मछलिओं के बच्चो के मुँह के आकर बहुत छोटे होते और वह चोकर आसानी से खा सकते है और पाचा भी लेती है
पानी में रहने वाली बत्तख – हमलोग पानी में रहने वाली बत्तख भी पाल सकते है क्युकी बत्तख का जो बीट रहता है उसे मछलियां खाती है और यह भी देखा गया है जिस तालाब में बत्तख रहते है उस तालाब की मछलियों का वजन बहुत ही तेज़ी से बढ़ जाता है यह एक बहुत ही अच्छा विचार है अगर आप मछली पालन कर रहे है तो साथ में बत्तख भी पाल सकते है इसमें आपको दूगनाह मुनाफा होगा
कई व्यापारी तो मछलियों को आटा भी दिया करते है इसके छोटे-छोटे टुकड़े बना कर मछलियों को दाने के रूप में दिया करते है ऐसे कई आहार ऐसे भी जिसे हम मछलियों को प्रदान कर सकते है,जैसे जमीन से निकलने वाले केंचुए भी मछलियों को दिए जाते है इनसे मछलियों में विकास जल्दी होता है |
मछली संचयन आप अप्रैल से जून तक कर सकते है मछली संचयन के समाये में मछली का वजन 40 से 50 ग्राम और इनकी लम्बाईए 35 से 40 सेंटीमीटर होना चाहिए
जब मछलियां छोटी रहती है तो वह अपना वजन का सिर्फ 5% ही दाना खा सकती है और जैसे जैसे मछली बढ़ने लगती है और बड़ी हो जाती है तो जो उनका खाना होता है प्रतिशत में घाट जाता है वो अपने वजन का 4% ही खाना खा सकती है
जो लोग मछली पालन करना चाहते है उन्हें यह दिक्कत भी आता है की मछलियों को आहार कितना दे तो आज मैं आपको बताने वाला हूँ की प्रति हेक्टर कितन आप आहार मछलियों को दे सकते है
पहला 3 महीना में आपको 3 किलो दाना देना है
दूसरे 3 महीना में 8 किलो दाना देना होगा
तीसरे 3 महीने में 16 किलो दाना देना होगा
चौथी 3 महीना में 24 किलो दाना देना होगा
मछली को बाहर तभी निकाला जाना चाहिए जब वह 1 से 1.5 किलो की हो जाए।क्योंकि अगर मछली का वजन इससे कम हुआ तो आपका नुक्सान होगा। इसलिए मछलीके इतना बड़े होने तक इंतज़ार करें।
आमतौर पर मछली 10 से 12 महीनो में इतने वजन की हो जाती है इसके बाद बाहर जाकर बेचने के लिए भी तैयार होती है पर मछली को बेचने के लिए उसको पानी से सही से निकालना भी होगा। तो मछली को पानी से बाहर निकालने के लिए जाल का इस्तेमाल कर सकते है।
एक एक करके मछली को पकड़ने में काफी समय लगेगा इसलिए मछली के बीज जो आपने अपने नजदीकी मतस्य विभाग से लिए उनको पानी में 1 साल तक डालने के बाद जाल की मदद से मछली को पानी से बाहर निकाले।इसके साथ ही मछली को जल्दी ही बाजार तक पहुंचाए। क्योंकि ज्यादा समय तक खुली जगह में रहने के कारण मछली खराब हो जाती है।
मछली पालन में लागत आपकी जरुरत के हिसाब से हो सकती है। इसकी लागत मछलियों की संख्या और उनके रहने की जगह में लगे पैसे को जोड़कर 3 से 4 लाख तक हो सकती है। इसके बाद आपको मुनाफा होने में भी 1 साल तक का इंतज़ार करना पड़ेगा। इस बीच मछलियों पर लगभग 1 लाख तक का खर्च और आ जायेगा।
इसलिए 4 से 5 लाख निवेश आप शुरुआत में मानकर चलें। दोस्तों अगर हम मछलियों से होने वाले मुनाफे की बात करे तो हम इसे ऐसे भी समझ सकते है अगर हम जमीन और मछलियों के 5000 बीज में 5 लाख का 25 प्रतिशत भी खर्च करते है और मछलियों को बड़ा होने के लिए तालाब और टैंक में रख देते है
और उन मछलियों को तब निकालते जब उनका वजन लगभग 1 किलो के बराबर हो गया हो और हम हर मछली को लगभग 100 से 150 रुपय पर भी बेचते है, तो आप सोच सकते की कितना का मुनाफा हुआ है तो हम देख सकते है मछली के व्यवसाय में हमे कितना का फायदा हो सकता है |
मतस्य पालन में मुनाफा काफी अधिक है इसमें आप हर साल 4-5 लाख रुपये आसानी से कमा सकते है आप जितनी ज्यादा मछलियों को पालेंगे उतना ही ज्यादा पैसा कमाएंगे। अच्छी नस्ल और अच्छी मछलियां आपको बिजनेस में आगे पहुंचाने में काफी मददगार साबित हो सकती है इसलिए मछली को अच्छा खाना, साफ़ पानी दे।
ऐसे तो भारत के हर शहर में मछलियों को बेचने के लिए एक हाट लगता है जहाँ पर सिर्फ मछलियों की ही मंडी लगती है और गाँव या उनके छोटे बाज़ार में आप खुद भी मछलियों को ले जाकर बेच सकते और बढ़िया पैसा कमा सकते है गाँव के बाजार में मछलियों का अच्छा व्यवसाय होता है मछलियों के कई बड़े फार्म तो सादी या बड़े पार्टी में भी मछलियों का सप्लाई देते है और अच्छा मुनाफा कमाते है|
मछली पालन का व्यवसाय को घर पर शुरू करने के लिए ज्यादा कुछ नही करना होता है, न ही ज्यादा का लागत लगता है | घर पर इस बिजनेस को शुरू करने के लिए टैंक की जरूरत होती है जिसमे हम मछलियों को रख सके | बाज़ार में मिलने वाले टब का भी इस्तेमाल कर सकते है |मगर इनमे रहने वाले पानी को हफ्ते में हमेशा साफ करना पड़ता है ताकि मछली का गंध फैले नही|
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]]>आप मुर्गी पालन व्यवसाय कम लागत, कम जगह के साथ शुरू कर सकते है। आपको शायद पता न हो पर आप मुर्गी पालन जैसे बिजनेस करके बहुत ही अच्छा पैसा कमा सकते है।
यह बिजनेस ऐसे है जिसके लिए अगर आपके पास पूँजी भी नहीं है तब भी आप बैंक से लोन लेकर इन्हें शुरू कर सकते है इनके लिए आपको बहुत ही कम व्याज दर पर लोन मिल जायेगा। अगर आपने निर्णय कर लिया है खुद का बिजनेस करने का तो आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की किस तरह आप poultry farming यानी की मुर्गी पालन का बिज़नस शुरू कर सकते है।
बिजनेस कोई भी हो उसकी सफलता आपकी मेहनत पर ही निर्भर करती है अगर आपको poultry farming के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है तो सबसे पहले इसके बारे में जानकारी जुटाए। जानकारी जुटाने के लिए अपने पास के पोल्ट्री फार्म के मालिकों से मिले।
उनसे मिलके बिजनेस कैसे करना है और किस तरह से अपना सामन मार्किट तक भेजना है यह सब जानकारी जुटा ले। भले ही आप उनके अनुसार काम न करें पर जितनी अधिक जानकारी आपके पास होगी , उतना ही बेहतर आपके बिजनेस के लिए होगा।
आप किस स्तर पर और कितनी मुर्गी को रखना चाहते है आपको उसी हिसाब से जमीन का इंतज़ाम करना होगा। वेसे तो एक मुर्गी के लिए 1 से 2.5 वर्गफुट जमीन पर्याप्त होती है अगर इससे कम हो तो मुर्गियों को परेशानी आ सकती है तो अगर आप 150 मुर्गियों को पालते है तो आपको 150 से 200 feet जमीन की आवश्यकता होगी।
ध्यान रहे जब आप जगह/शेड बनाने का चयन करते है तो यह जगह साफ़ सुथरी और खुली हुयी होनी चाहिए। जगह खुली हो पर सुरक्षित भी होनी चाहिए। खुली जगह इसलिए जरुरी है क्योंकि इससे खुली हवा मुर्गियों को मिलती रहेगी और वह आगे चलकर बहुत सी बीमारियों से भी सुरक्षित रहेंगे।
बाकी आप अपनी इच्छा के अनुसार शहर में या शहर के बाहर अपने पोल्ट्री फार्म बनाने का चयन कर सकते है। कई शहरो में आपको पोल्ट्री फार्मिंग शुरू करने के लिए पहले permission की आवश्यकता होती है जो की आप अपने शहर के नगर निगम ऑफिस में जाकर पता कर सकते है। आपको आसपास रह रहे लोगों से NOC यानी की No Objection Certificate की भी आवश्यकता पढ़ सकती है।
जगह का चयन कर लेने के बाद आपको उस जगह पर अपनी मुर्गियों को उचित सुविधाये प्रदान करनी होगी। जैसे की आपको शेड में पानी की अच्छी व्यवस्था करनी होगी। आपको अपने मुर्गियों , चूज़ों को सूखी जमीन में रखना होगा। गीली जगह पर उनके बीमार होने का खतरा बढ़ जाता है। शेड को कुछ इस ढंग से बनवाये जिसमे खर्च भी कम आये और आपको बेस्ट result मिले।
मुर्गी पालन के बिजनेस में आपको सबसे पहले निर्णय लेना होता है की आप किस तरह की मुर्गी पालना चाहते है। मुर्गी कुल तीन प्रकार की होती है। जिसमे लेयर मुर्गी, ब्रायलर मुर्गी और देसी मुर्गी शामिल है।
लेयर मुर्गी का इस्तेमाल ज्यादातर अंडे पाने के लिए किया जाता है। यह 4- 5 महीने की होने के बाद अंडे देना प्रारम्भ कर देती है। इसके बाद यह लगभग 1 साल तक अंडे देती है। उसके बाद जब इनकी उम्र 16 month के आसपास होती है तब इनको मांस के लिए बेच दिया जाता है।
दूसरी होती है ब्रायलर मुर्गी , इनका इस्तेमाल ज्यादातर मांस के रूप में किया जाता है। यह दूसरे प्रकार की मुर्गी की तुलना में तेज़ी से बढ़ते है यही वजह है जो इनको मांस के रूप में इस्तेमाल के लिए सबसे बेहतर बनाता है।
आखिरी होती है देसी मुर्गी , इनका इस्तेमाल अंडे व मांस दोनों पाने के लिए किया जाता है। आप किस तरह की मुर्गी का पालन करना चाहते है वह निर्णय ले। उसी हिसाब से आपको चूज़ों को खरीदना होगा।
अगर जगह का चयन और मुर्गी के प्रकार का चयन कर लिया गया है तो अब बारी आती है चूज़ों को लाने की। तो आपको बता दे की पोल्ट्री फार्मिंग में चूज़ों का बहुत ही अधिक महत्त्व है इनके बिना यह बिजनेस मुमकिन नहीं। इसलिए आप जहाँ कहीं से भी इन्हें लाये इतना ध्यान रखे की ये बिमारी से ग्रसित न हो।
क्योंकि अगर ये बीमार हुए तो आपके बाकी चूजों पर भी असर हो सकता है और वह भी बीमार हो सकते है। इसलिए किसी जाने माने एक्सपर्ट की मदद से ही अपने यहाँ चूजों को लाएं। ज्यादातर चूजों की कीमत 30 से 35 रुपये के आसपास होती है आप 3000 से 3500 में 100 चूज़े खरीद सकते है।
अब आपके पास बिजनेस के लिए जमीन है चूज़े भी है तो अब बारी आती है उनके लिए खाने के इंतज़ाम करने की। तो आप मुर्गियों को कई अलग-अलग तरह का चारा दे सकते है। पर अगर आप अपने चूजों में ज्यादा विकास देखना चाहते है तो आप उनको अलसी , मक्का आदि खाने को दे सकते है। यह दोनों ही काफी पौष्टिक होते है और growth में मदद करते है। इसके अलावा आप को मुर्गियों के लिए पानी का इंतज़ाम करना होगा।
ध्यान रहे पानी साफ़ रहे और जो पानी का बर्तन है उसे समय समय पर साफ़ करते रहे। मुर्गियों और चूज़ों को खाना रात में देने की वजह दिन में दे। रात में वह खाना नहीं खाते है इसलिए विकास के लिए दिन में ही खाना दे। अगर ठीक से खाना दिया जाए तो एक चूज़े को 1 किलो वजन करने में लगभग 45 से 55 दिन लग सकते है। वजन बहुत ही आवश्यक होता है इसलिए खाने पर ध्यान दे।
पोल्ट्री फार्मिंग की आखिरी स्टेप होती है आपके सामान को मार्किट में भेजने की। अगर आप अंडे बेचते है तो उनके आपको 4 से 5 रुपये तक मिल सकते है वहीँ अगर आप मुर्गी को बेचते है तो आपको इसके वजन के हिसाब से पैसे मिल सकते है जैसे की आप 1 किलो के लगभग 75 से 80 रुपये अासानी से कमा सकते है और जब इनका सीजन जैसे शादी , सर्दी आदि का तब आपको इसके 100 se 120 रुपये तक मिल सकते है या शायद उसके ज्यादा भी। इसलिए अच्छा मुर्गी के लिए खाना बहुत ही ज्यादा जरुरी है तब ही आप ज्यादा लाभ प्राप्त कर पाएंगे।
मुर्गी पालन शूरु करने के लिए आपको बहुत ज्यादा तो नहीं पर 1 से 2 लाख रुपये तो शुरू में खर्च करने होंगे अगर आप एक अच्छा मुनाफा देख रहे है तो क्योंकि अगर मुनाफ़ा न हो तो फिर इतना समय बर्बाद करने का क्या फायदा इसलिए 2 से 3 लाख के आसपास रुपये लगाकार , आप 30 से 40 हज़ार रुपये तक कमा सकते है। जो की निवेश के हिसाब से काफी अच्छे है।
तो दोस्तों ये थी आसान स्टेप जिससे की आप समझ गए होंगे की पोल्ट्री फार्मिंग शुरू कैसे करें। यह बिजनेस आज के समय में काफी लोगों की पसंद बनता जा रहा है तथा इसमें होने वाला मुनाफा भी समय के साथ बढ़ता जा रहा है अगर अभी आप ये बिजनेस शुरू करते है तो उम्मीद है की आगे चलकर यह बिजनेस और भी grow करेगा और आपका फायदा बढ़ता ही जायेगा।
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]]>डेयरी फार्मिंग क्या है?
डेयरी फार्मिंग का सम्बन्ध है दूध और उससे जुड़े प्रोडेक्ट का उत्पादन करना इसमें आपको मुख्य रूप से डेरी प्रोडेक्ट यानी की वह प्रोडेक्ट जो दूध से जुड़े होते है मार्केट में बेचने होते है। आप दूध तो आसानी से अलग अलग पशु जैसे गाय , भैंस आदि से प्राप्त कर सकते है पर इससे जुड़े प्रोडेक्ट जैसे दही , घी आदि के लिए आपको अलग से काम करना पड़ेगा जिसमें समय लगता है। इसलिए अगर आप चाहे तो सीधा दूध ही बेच सकते है। तो आज की इस पोस्ट में हम आपको बताएँगे की किस तरह आप खुद अपना डेरी फार्मिंग का बिजनेस शुरू कर सकते है और इसकी मदद से एक अच्छा ख़ासा बिजनेस सेट कर सकते है।
डेयरी फार्मिंग कहाँ से शुरू करें ?
अगर आपने अपना मन बना लिया है की डेरी फार्मिंग ही वह बिजनेस है जो आप करना चाहते है तो अब आप सोच रहे होंगे की इसकी शुरुआत कहाँ से करें ? इसकी शुरुआत आपको सबसे पहले यह निर्णय लेकर करनी होगी की आपको अपने फार्म में कौन कौन से पशु रखने है ? गाय , भैंस और बकरी तीनों ही दूध देने वाले पशु है। आपको यही पशु अपने फार्म में रखने होंगे इसके बाद सबसे पहली चीज़ जो आपको करनी चाहिए वह है पशुओं की अलग अलग नस्लो की जानकारी जुटाना क्योंकि गाय व भैंसो की बहुत सी अलग अलग नस्ले मौजूद है
और वह सब अलग अलग मात्रा में दूध देने के लिए जानी जाती है इसलिए इनकी जानकारी कर लेना बहुत ही आवश्यक है बिना सम्पूर्ण जानकारी के कोई भी बिजनेस नहीं चल सकता। इसलिए हमें उसी नस्ल का चुनाव करना चाहिए जो ज्यादा दूध उत्पन्न कर सके भारत में भैंसो की मुर्राह , भाद्वारि और मेहसाना जैसी नस्ले काफी लोकप्रिय है जबकि गायो की साहिवाल , जर्सी और Friesian जैसी नस्ले पायी जाती है। इनकी कीमत भी अलग अलग हो सकती है इसलिए सबसे पहले अपने बजट के अनुसार ही नस्लो का चुनाव करें।
भारतीय गायो की प्रमुख प्रजातिया की जानकारी के लिए यहा से पढ़े ( गाय की नस्ल Cow breeds)
कहा से ख़रीदे प्रमुख नस्ल की दूध देनेवाली गाय ( place to buy cow for dairy farming)
हमारे भारत में डायरी फार्मिंग बिजनेस के लिए सरकार के दुवारा लोगो को अच्छी खासी मदद मिल रही है अपना खुद का डायरी फार्म शुरू करने के लिए सरकार की वेबसाइट से आप अच्छी नस्ल की गाय, भैंस खरीद यह बेच भी सकते है यह वेबसाइट में आपको गाय की प्रमुख नस्ले की जानकारी और उनकी विशेषताएं के बारे में पूरी जानकारी मिल जाएगी
डायरी फार्म के लिए गाय और भैंस खरीदते समाये कुछ ख़ास ध्यान देने वाली बात
हमारे भारत में भैंस और गाय की कई तरह की प्रजाति पाई जाती है जो अपने में बहुत ही महत्वपूर्ण होते है और जितने भी नस्ल है सब की दूध देने की छमता एक दूसरे से अलग होती हैं कोई ज्यादा देती है तो कोई काम देती है डायरी फार्म के लिए आप उन नस्ल की गाय के चुनाव करे जो दूध ज्यादा देती हो जैसे की साहीवाल यह 15 से 18 लीटर दूध देती है थारपारकर यह एक दिन में 16 से 18 लीटर दूध देती है आपको सही नस्ल का चुनाव करना बहुत ही जरूरी होता हैं तभी आप अपने बिजनेस में सफलता पा सकते हैं ध्यान रखे
Step 2) पशुओं के लिए जगह की व्यवस्था करना
अब आप अपने पशुओं का चुनाव कर चुके है तो आपको गाय व भैंसो को रखने के लिए जगह का इंतजाम करना होगा। अब आप किसी शहर में बड़ी डेरी नहीं खोल सकते है इसलिए अगर आप बड़ी डेरी खोलने की सोच रहे है तो आप शहर के बाहर ही यह कर सकते है। एक पशु (गाय या भैंस) को रहने के लिए लगभग 50 वर्गफीट की आवश्यकता होती है
इसलिए अगर आप 10 10 पशु पालने के बारे में सोच रहे है तो आपको 500 से 600 वर्गफीट जगह का इंतजाम करना होगा। इसके अलावा आपको पशुओं के रहने के स्थान को कुछ इस तरह से बनाना होगा जहाँ से ताज़ा हवा आती व जाती रहे । जिससे पशुओं को भी ताजी हवा मिलती रहेगी। यह उनके स्वास्थ्य के लिए काफी आवश्यक है।
Step 3) खाने को क्या दे ?
अब आप अपने पशु और जगह का चुनाव कर चुके है तो आपको उनके खाने पानी का भी उचित इंतज़ाम करना होगा। जितना अच्छा और पौष्टिक खाना पशुओं को दिया जायेगा उतना ही अच्छा और ज्यादा दूध पशु हमको दे पाएंगे ।इसलिए हमको अच्छी मात्रा में पशुओं को अच्छा खाना देना होगा। पशुओं को भूसा तो देना ही है इसके साथ साथ हरी घास आदि भी देना होगा। हरी घास देने के बहुत से फायदे होते है एक तो यह दूध में वृद्धि करती है वहीँ इसकी कीमत भूसे से कम होती है इसलिए आपकी जेब पर भी थोडा कम असर पड़ता है।
इसके अलावा ज्यादा दूध के लिए पशुओं को मिनरल्स भी खाने में दी जानी जरूरी होती है पानी भी अधिक मात्रा में देना होगा क्योंकि अगर पशु पानी नहीं पीता है तो वह सही मात्रा में दूध नहीं दे पायेगा। पशुओं को पानी के लिए आपको बोरेवेल का इंतज़ाम करना होगा। क्योंकि अगर आप 10 भी पशु रखेंगे तो उसमे भी पानी की बहुत जरुरत पड़ेगी। जैसे की पीने में,साफ़ सफाई आदि में ।
Step 4) फाइनल और आखिरी स्टेप
अब आप लगभग सब जरुरी चीजे पूरी कर चुके है अब आपको केवल अपने दूध को मार्किट में पहुंचाना होगा। आप मार्किट में अपना दूध 40 रुपये तक की कीमत पर बेच सकते है।
डायरी फार्म की लागत
डायरी फार्म की लागत आपके पशुओं की नस्ल पर निर्भर करती है अच्छी नस्ल के पशु अक्सर महंगे होते है अगर आप अपनी डेरी में 10 पशु पालन चाहते है तो आपको डेरी खोलने में 6 से 7 लाख रुपये लगाने होंगे। जिसमे आपके पशु , रहने की जगह बनाने की कीमत आदि शामिल है। इसके बाद तो आप अपने दूध के आयत से ही अपने पशुओं का खर्चा चला पाएंगे साथ ही खुद के लिए एक अच्छा ख़ासा मुनाफा भी कर पाएंगे।
डायरी फार्म में मुनाफा
डायरी फार्म में अगर आपके पास 10 पशु है और हर पशु हर दिन का अगर 10 लीटर दूध देता है तो आपके पास 100 लीटर दूध हर दिन का हो रहा है। दूध की औसत कीमत 40 रुपये लीटर होती है जो गर्मियोंमे बढ़ जाती है तो 40 रुपये लीटर के हिसाब से आप हर दिन के 4,000 रुपये कमा सकते है जो की एक बहुत ही अच्छा मुनाफा है। 4,000 में से अगर आप अपने पशुओं 3,000 खाने पीने पर भी खर्च कर दे तब भी आप हर दिन के 1,000 रुपये कमा लेंगे।
जो की एक महीने का 30,000 रुपये हो रहा है। इतने पैसे शुरुआत में बहुत होते है पर जैसे जैसे आप बिज़नस के बारे में ज्यादा समझते जाएंगे आप ज्यादा पैसे कमा सकते है। आप दूध का उत्पादन बढ़ा सकते है और फिर इससे ज्यादा पैसे कमा पाएंगे। तो दोस्तों इस तरीके से आप खुद के पैरो पर खड़ा हो सकते है। अगर आपके पास निवेश के लिए पैसे नहीं है तो आप बैंक से लोन भी ले सकते है इन तरह के बिज़नस में लोन भी बड़े आसानी से मिल जाता है।
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]]>आज कल मशरूम की खेती करना लोगों का एक शौक होती जा रहा हैं घर की महिलाये अपने घर के काम के साथ मशरुम की खेती आराम से कर सकती हैं मशरुम की खेती करना कोई मुश्किल काम नहीं हैं अगर आप उत्पादक बढ़हाने के लिए कुछ सरल नियमों का पालन करे
आप अपने घर पर ही कोई कंटेनर यह बॉक्स में मशरुम ऊगा सकते हैं और यह लगभग छह सप्ताह के भीतर, एक कमरे के अंदर एक अत्यधिक लाभदायक फसल के रूप में तैयार हो जाता हैं मशरूम की खेती आप किसी भी कमरे, शेड, बेसमैंट, गेराज इत्यादि में कर सकते हैं जो अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए हालांकि आप मशरुम की खेती अपने घर के बहार कोई छायादार स्थानों में भी कर सकते हैं
वैज्ञानिकों के अनुसार पूरी दुनिया में मशरूम के 10000 से भी ज्यादा प्रजाति पाई जाती है पर इनमे से कुछ ही प्रजातियों का उपयोग हम अपने भोजन में करते हैं इनमे से 5 इस प्रकार हैं बटन मशरूम, पैडी स्ट्रॉ, स्पेशली मशरूम, दवाओं वाली मशरूम, धिंगरी या ओएस्टर मशरूम हैं
पर जब व्यक्ति व्यापारिक दृष्टिकोण से इसका उत्पादन करता है, तो वह ध्यान रखता है की किस किस्म के मशरूम की अधिक मांग है, साथ ही कौन सी मशरूम अधिक पैदा वार देती है इस हिसाब से मशरूम की सिर्फ तीन प्रजाति है, जो अच्छी पैदावार देती है बटन मशरूम, पैडी स्ट्रॉ, धिंगरी या ओएस्टर मशरूम इस तीन तरह के मशरूम से अच्छा उत्पादन पाया जा सकता है
बहुत से लोगो को यह भ्रम होता है कि मशरूम पौधा है, क्योंकि इसके उत्पादन के लिए भी वही प्रक्रियाएं अपनाई जाती है, जो बाकी सभी फसलों के साथ अपनाते हैं लेकिन मशरूम कोई पौधा नही है, लेकिन यह पौधे का काफी करीबी होता है मशरूम एक कवक है, जिसका उपयोग आज हर जगह भोजन में किया जाने लगा है जब कोई भी व्यक्ति मशरूम की खेती इस वजह से करता है की वह इसके द्वारा खाने योग्य मशरूम का उत्पादन कर सके, यही मशरूम फार्मिंग कहलाता है
मशरूम का बिजनेस करने के लिए सबसे पहले मशरूम की खेती करने से जुड़ी सभी छोटी बड़ी बातों का ज्ञान होना जरूरी है जैसे कि मशरूम की खेती के लिए किस विधि का उपयोग करते हैं मशरूम के उत्पादन के बाद उनका बिजनेस कैसे करना है इसके लिए आपकी मार्केटिंग की योजनाएं क्या होगी इस सब बातों का ज्ञान होने के बाद ही इस बिजनेस में अपने हाथ आगे बढ़ाएं
मशरूम की खेती में कॉम्पोस्ट खाद का अहम रोल होता है कॉम्पोस्ट खाद आप धन या गेहूं के भूसे के माध्यम से बना सकते है इसके लिए आपको करीब 1450 लीटर पानी लेना होता है उसमे आपको 1.5 किलोग्राम फार्मलीन एवं 150 ग्राम बेवस्टीन मिलाकर इसमे 1 क्विंटल और 50 किलोग्राम भूसा को भिगो देते हैं इसके बाद इस मिश्रण को कुछ समय के लिए ढक कर रखा जाता है यह प्रक्रिया इस लिए की जाती है ताकि भूसा शुद्ध हो जाये भूसा का शुद्धिकरण बहुत जरूरी रहता है यदि भूसा शुद्ध नही होगा तो मशरूम का उत्पादन सही से नही हो पायेगा
मशरूम के लिये भूसा तैयार होने के बाद बारी आती है, मशरूम के बुवाई की मशरूम की बुवाई से पहले आपको पानी मे भीगे हुए भूसे को निकालकर हवा में फैलाना होता है, ताकि उसमे मौजूद पानी और नमी सुख जाए इसके बाद आपको इसके बीज बोने के लिए पॉलीथिन के बैग्स लेने पड़ेंगे, जिनकी साइज 16 बाई 18 होना चाहिए
इन पोलीथिन के बैग में सबसे पहले भूसा डाल दीजिए, उसके बाद मशरूम के दानों का छिड़काव करिए इसके बाद इन दानों के ऊपर एक बार फिर भूसा की परत चढ़ा दीजिये फिर इस परत के ऊपर एक बार मशरूम के दाने का छिड़काव करिए ऐसा कम से कम 4 बार चढ़ानी पड़ेगी
इस पॉलीथिन के बैग में आपको दोनों कोनों पर छेंद करना जरूरी होता है, जिससे भूसे का अतिरिक्त पानी आदि निकल जाए यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद बैग्स को ऐसी जगह पर रखें जहां हवा लगने की गुंजाइश बहुत कम ही हो हर तरह के मशरूम के लिए उसकी बुवाई की प्रक्रिया में थोड़ा फर्क होता है कुछ मशरूम ऐसे होते हैं जिनके बुवाई के लिए भूसे और मशरूम के दाने को एक साथ मिला लिया जाता है
मशरूम को शुरू में हवा से बचाकर रखना बहुत जरूरी होता है नही तो नमी के कारण खराब भी हो सकते हैं नमी से बचाने के लिए इन बैग को किसी कमरे में रख दें, जहां हवा का प्रवेश लगभग निषिद्ध हो किसी कमरे में इन्हें रखकर 15 दिनों के लिए वह कमरा बंद करके रख दें 15 दिन बीत जाने के बाद इसे हवा दिया जा सकता है इसलिए अब दरवाजे को खोल दें, साथ ही कमरे में एक पंखे की व्यवस्था कर दें, ताकि इन मशरूम को हवा मिल सके 15 दिनों बाद मशरूम के सफेद रंग को देखा जा सकता है
मशरूम की अच्छी पैदावार के लिए इनके थैलों को अच्छे से रखना बेहद जरूरी होता है इनका सही तरह से रखरखाव जरूरी है इनको रखने के लिए आप कमरे में लोहे आदि का एक पलंग नुमा जंजाल बनाकर उसमें इन बैग को रख सकते हैं इसके अलावा लकड़ी के माध्यम से उन्हें टांगने आदि की व्यवस्था भी की जा सकती है
यदि मशरूम के फसल के तैयार होने की अवधि देखे तो यह 30 से 40 होती है इतने अवधि में यह पौधे कटाई के लिए तैयार हो जाते है
यदि आपको मशरूम की खेती जे जुड़े अनुभव हासिल करने है तो देश मे ऐसे कई विश्वविद्यालय और कृषि से संबंधित क्षेत्र हैं जो इसकी खेती से जुड़ी ट्रेनिंग कराते हैं इसके साथ इसकी खेती से जुड़ी अधिक जानकारी आपको अपने शहर के किसान सहायता केंद्र से भी मिल जाएगी, जहां आप इसकी खेती से संबंधित सभी जानकारी हासिल कर सकते हैं
इसके खेती के संबंध में सरकार भी मदद करती है हरियाणा की सरकार ने इस खेती के लिए अच्छे कदम बढ़ाये हैं सरकार ने किसानों को इसकी खेती के लिए प्रशिक्षण देने का फैसला किया है सरकार छोटे किसानों को मशरूम के हर बैग पर 40% तक कि सब्सिडी दे रही है वही मझोले किसान भी सरकार से 20% की सब्सिडी पा रहे हैं यदि आप बिना सब्सिडी के खेती करने में सक्षम है तो आप को कोई पंजीकरण कराने के जरूरत नही होती है
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]]>अगर आप मशरूम की खेती करके अच्छी कमाई करने की सोच रहे हैं तो बटन मशरुम की खेती से आप अच्छी खासी कमाई कर सकते हैं क्युकी भारत में इसकी मांग काफी ज्यादा हैं इसकी खेती करना कोई मुश्किल काम नहीं हैं इसमें कोई सांइंस (science) नहीं लगती इसकी खेती आप किसी भी छोटी जगह यह अपने घर की कोई खली जगह में आराम से कर सकते हैं
मशरुम अपनी गुंडों और ख़ासियत की वजह से बहुत ही ज्यादा लोकप्रिय होती जा रही हैं बाजार में मशरुम की मांग अच्छी हैं क्युकी इसमें प्रोटीन, फ़ाइबर, और एमिनो एसिड होता हैं जो हमारे सेहत के लिए बहुत ही ज्यादा लाभदायक होता हैं
भारत में मशरूम खेती के कारोबार का दायरा क्या है (Scope in india)
भारत में मशरूम की कई किस्में पाई जाती हैं भारत में ज्यादा तर बटन मशरूम की अच्छी खासी मांग हैं जबकि अन्य मशरूम (ऑयस्टर, दूधिया आदि) की मांग लोगो में ज्यादा नहीं हैं लेकिन आजकल इसकी लोकप्रियता भी बढ़ती जा रही हैं
मशरूम खेती का कारोबार आप बहुत आसानी से कर सकते हैं मशरूम की मांग प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं क्योंकि मशरुम में कई प्रकार के पोषक तत्वों पाए जाने के करण भारत में अधिक से अधिक लोग स्वास्थ्य जागरूक हो रहे हैं और मशरूम उनके लिए एक अच्छा विकल्प हैं
अगर आप मशरूम की खेती एक छोटे से व्यवसाय के रूप में शुरू करना चाहते हैं तो यह खेती मुश्किल नहीं हैं इसे आप कम पूंजी कम जगह में अपने घर में रह कर भी आसानी से शुरू किया जा सकता हैं अभी हाल में हमारे भारत के कुछ राज्य में जैसे उत्तर प्रदेश, राजस्थान में मशरुम की खेती होने लगी है इतना ही नहीं कुछ ठंडे राज्य में भी इनकी खेती हो रही है
मशरूम की खेती के लिए किन किन चीजों की अवसक्ता होती है
1) जगह का चुनाव करे (space requirement) –
मशरूम की खेती करने के लिए सबसे पहले आपको सही जगह का चुनाव करना होगा जहा आप मशरुम ऊगा सके इसके लिए आपको पहले यह तय करना होगा की आप मशरुम की खेती छोटे यह बड़े पैमाने में करना चाहते है अगर आप छोटे पैमाने में करना के सोच रहे तो इसे आप अपने घर से भी शुरू कर सकते है जो अच्छी तरह से हवादार होना चाहिए इसके लिए आपको सिर्फ 250 से 300 squ feet जगह का इंतज़ाम करना होगा मशरुम की खेती आप अपने घर के बहार भी कर सकते है मगर ऐसा जगह चुने जहा धुप नहीं आती हो जगह पूरा बंद हो
मशरूम को 3 तरह से उगाया जा सकता है
1) मशरूम उगाने के लिए बांस का bed बना कर इसके उप्पेर मशरुम रखा जाता है अगर आप सुरुवात कर रहे है तो आप bed बनाकर काम खर्चे में सुरुवात कर सकते है
2) मशरूम को हवा में लटका कर इस विधि में आपको मशरुम के बीज को प्लास्टिक में डाल कर लटका दिया जाता है इसे यह होता है की जगह भी कम लगता है और कम जगह में ज्यादा मशरुम ऊगा सकते है
3) मशरूम यह उसके बीज को जमीन से थोड़ी उप्पर रख कर भी आसानी से उगाया जा सकता है और बड़ी प्लास्टिक से धाक दिया जाता है ताकि धुप नहीं पड़ सके
मशरूम के प्रकार (Types of mushroom)
मशरूम की खेती के लिए भारत में सिर्फ 3 types के मशरुम उगाये जाते हैं
1) button mushroom
2) Paddy straw mushroom
3) oyster mushroom
अधिक जानकारी के लिए यहाँ से पढ़े मशरुम उगाने की विधि
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